करता नमन मैं विष्णु प्रभु को, सिर मैं झुकाता हूँ त्रिलोकी को । राजनीति बतलाता हूँ भू को, उद्धृत है सब शास्त्रों से जो । योग्य-अयोग्य शुभाशुभ कर्म में, शास्त्र ज्ञान से अंतर पाये । अर्थशास्त्र का ज्ञान हो जिनको, उत्तम नर में गिना जाये । लोक भलाई जिसमें है वह बात कहूँगा, समझ जिसे […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 17
गुरु की संगति से नहीं विद्या है पाया जो, पुस्तक पढ़कर स्वयं ही विद्या पाया है सो । नहीं समाज में आदर पाता है वह वैसे, व्यभिचारी नारी शोभा पाती है जैसे । उपकार उपकारी के संग, पाप न हिंसा, हिंसक के संग । करें दुष्टता दुर्जन के संग शांत है करता जंग को जंग […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 16
न ईश्वर का ध्यान किया जो, नहीं धर्म का लिया सहारा । नहीं स्वर्ग के लिए किया कुछ, न पारलौकिक जन्म सुधारा । न कठोर स्तन रमणि का, न जांघों के सुख को पाया। न नितंब का किया आलिंगन, लौकिक जीवन व्यर्थ गंवाया । न पारलौकिक, न ही लौकिक, जीवन सुख है जिसने पाया । […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 15
ज्ञान, मोक्ष, जटा, भस्म की, नहीं कभी है उसे जरूरत । कष्ट देखकर किसी जीव का, मन जिनका हो दया की मूरत । एक अक्षर उपदेश कभी भी, गुरु से शिष्य यदि ले पाए। न कोई धन इस धारा पर, जिसको दे उऋण हो जाए। दो विधि निपटें शठ, कांटा से, मुख तोड़ो बल प्रयोग […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 14
तीन रत्न है इस धारा पर, अन्न जल व मधुमय वाणी । शिलाखंड को रत्न मानते, कहलाते जन मूर्ख अनाड़ी । आत्मा के अपराध वृक्ष से, पांच फल है फलता तन में । रोग, दरिद्रता, दुख व बंधन, व्यसन वगैरह जन जीवन में। भार्या, मित्र, धन व धारा, मिलते ए सब बारंबार । किंतु शरीर […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 13
उज्जवल कर्म को करके जीना, एक मुहूर्त भी होता श्रेष्ठ । दोनों लोक से कर्म हो उल्टा, कल्प क्षण भी जीना नेष्ट । बीता समय का सोच न करना, न भविष्य की चिंता धर्म है । वर्तमान में रहना जीना, कहती नीति यही कर्म है । देवता, सत्पुरुष, पिता, होते खुश स्वभाव शील से। भाई […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 11
दान शक्ति, ज्ञान उचित का, धीरता और मृदु बाणी । स्वाभाविक हैं ए चारो गुण, न अभ्यास से पाये प्राणी । अपने वर्ग को छोड़कर जाता जो पर वर्गों में । अधर्मी नृप सामा काल के गर्भों में । अंकुश करता हाथी वश में, तो क्या अंकुश गज ऐसा है । दीपक दूर है तम […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 12
सदा आनंद रहे उस घर में, पुत्र जहां सुविचारी हो । इच्छित धन अतिथि सेवा, पति र पत्नी नारी हो । आज्ञा पालक सेवक नौकर, प्रतिदिन शिव का पूजन हो । मीठा भोजन मीठा जल हो, मित्र मंडली सज्जन हो । भूखे मन को ब्राह्मण जन को श्रद्धा पूर्वक, थोड़ा सा भी दान है देता […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 10
धनहीन नहीं कहाये निर्धन, विद्याहीन सदा ही निर्धन | धनहीन निर्धन नहीं गिनाए. विद्याहीन जनों में निर्जन । परख नैन से पांव बढ़ाना, छान वस्त्र से अंबु पीना । मन में सोच कर कार्य करना, शास्त्र वचन से जीवन जीना । जो सुख चाहे त्यागे विद्या, विद्या चाहे त्यागे सुख को । सुखार्थी नहीं पाता […]
Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 9
गर मुक्ति की इच्छा रखते हो जनमानस, विषय वासना का विष सा परित्याग करो त । तू । क्षमा,सरलता,दया,पवित्रता और सच्चाई, को अमृत सा पान करो सुख पायेगा भू भेद परस्पर का बतलाता जो नराधम 1 अपना नाश निश्चित नर वह पाता वैसे । रेत के टीला के बिल में जो सांप है जाता, राह […]