Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 9

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गर मुक्ति की इच्छा रखते हो जनमानस, विषय वासना का विष सा परित्याग करो त । तू । क्षमा,सरलता,दया,पवित्रता और सच्चाई, को अमृत सा पान करो सुख पायेगा भू

भेद परस्पर का बतलाता जो नराधम 1 अपना नाश निश्चित नर वह पाता वैसे । रेत के टीला के बिल में जो सांप है जाता, राह नहीं मिलने के कारण मरता जैसे ।

ऊख में फल, गंध सोने में, विज्ञ, फूल हो सोना में । दीर्घायु राजा व गुरु हो, ऐसी कोई बुद्धि देते । अगर जगत में ये हो जाता 1 सुख का सागर जग पा जाता ।

औषधियों में अमृत राजा, में भोजन सभी सुख में महाराजा । इंद्रियों में नयन प्राण है, अंगों में मस्तक प्रधान है ।

न दूत जा सकता है नभ में, नहीं चल सकती है वार्ता | नहीं भेंट हो सकती जन से, नहीं कभी कोई की ए चर्चा ।

सूर्य चंद्र ग्रहण बतलाए, धारा से नभ को सिखलाए । जग में विज्ञ यही कहलाता, 1 दुनिया अपना शीश झुकाता

राजा सिंह, सांप व बालक 1 मूर्ख हड्डा, आदि । सोए हो तब नहीं जगाएं, इन सातों को नहीं भगाएं ।

धन के लोग से जिनकी विद्या बिक चुकी है, शुद्र के अन्न से प्रतिपालन होता है जिनका | ब्रह्म तेज से हीन हो जाते ये द्विज वैसे, सर्प विषहीन हो करके हैं जीते जैसे ।

जिनका क्रोध न भय उपजाये, न प्रसन्नता धन ले आए। नहानि न लाभ पहुंचाए, ऐसा नर लोग क्यों अपनाए ।

विषहीन सर्प को भी, चाहिए खूब फन को फैलाना । विषहीन अथवा विषधर हो, आडंबर भय का पैमाना ।

प्रातः जुआ प्रसंग में बीते, मध्यकाल चर्चा नारी से । रात्रि चोर प्रसंग में बीते, समय हमेशा सुविचारी के । महाभारत का मूल जुआ है, रामायण का मूल है सीता । भागवत है कृष्ण कहानी, यही सार कहे यह कविता ।

अपने हाथ की गूंथी माला, अपने हाथ से घिसा चंदन । अपना लिखित पद्य छंद को, इंद्र श्री भी करे अभिनंदन |

ऊख, तिल, शूद्र, दही, नारी, कंचन,धारा, पान, सुपारी । चंदन ए मर्दन अधिकारी, बनते ए सब तब गुणकारी ।

दरिद्रता में धैर्य की शोभा, मैला वस्त्र सफाई से । अन्न मीठा हो अग्नि से, कुरूपता शील बड़ाई से ।

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