Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 3

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कौन है कुल जो दोषहीन है कौन नहीं जो व्याधि पीड़ित । कौन पुरुष जो दुख विहीन है, कौन सा है सुख से मंडित ।

कुल का परिचय आचार देता, आदर से छिप प्रेम न पाए । बोली देश का पता बताती, भोजन तन की दशा बताए ।

कन्या ब्याहें श्रेष्ठ कुल में, पुत्र को विद्याभ्यास कराएं। मित्र फंसाएं धर्म कार्य में, शत्रु संकट में उलझाएं।

दुर्जन सर्प में चुनो सर्प को, काटे सर्प काल आने पर । दुर्जन न चुनो दुर्जन नहीं जन, डसता दुर्जन हर पग पग पर

संग्रह करते नृप सदा कुलीन पुरुष को, आदि मध्य या अंत में संकट आए। विश्वासी होते हैं ए नहीं धोखा देते, छोड़ नृप को दुर्दिन में नहीं भाग ए पाए ।

सब भेदों को निगले सागर, प्रलय जब हो भेद उगलता । प्रलय में मर्यादा तज कर, पूर्ण जगत को स्वयं निगलता । पर साधु सागर से उत्तम, प्रलय आने पर नहीं डरते डरे नहीं ए कभी किसी से, कभी नहीं मर्यादा तजते ।

मूर्ख जनों से दूर ही रहना, दोपाया पशु मूर्ख को मानो । छिपा कांटा चुभता जैसे, वचन मूर्ख का वैसा जानो ।

पूर्ण भले हो रूप यौवन में, कुल बड़ा हो या कुलीन । विद्या से गर दीन हीन नर, उस फूल सा जो रंग विहीन ।

कोमल कुहूक कोयल का रूप है, पतिव्रत रूप है त्रिया तन का । कुरूप विद्या रूप से सुंदर, क्षमा रूप तपस्वी जन का

कुल जन त्यागे गर कुल रक्षा, या कुल त्यागे ग्राम सुरक्षा । या ग्राम त्यागे देश की रक्षा, गर होती है सबसे अच्छा । आत्म सुरक्षा के गर कारण, पृथ्वी त्याग की पड़े जरूरत । तो भी त्याग करें धारा की, आत्मा सबसे दुर्लभ मूरत ।

दीन कभी नहीं उद्यमी होता, न जप करने वाला पापी । नहीं कलह गर चुप रहे जन, जागृत को नहीं भय की झांकी ।

हरण सीता का अति रूप से, मरा था रावण गर्व अति । नाश बलि का अति दान से, वर्जित है सब जगह अति ।

व्यवसाई न देखता दूरी न कुछ दुर्लभ समर्थवान को । नहीं पराया प्रियभाषी को देश न कोई विद्वान को ।

एक ही अच्छे वृक्ष के फल से, सारा जंगल महके जैसे एक सुपुत्र के पैदा होते, सारा कुल उज्जवल हो वैसे।

एक शुष्क वृक्ष जलने से, सारा जंगल जलता जैसे । पैदा होते एक कुपुत्र के, सारा कुल है मरता वैसे ।

रजनी जैसे उज्जवल बनती, चांद है आता ज्योंही नभ में । विद्वान साधु सुपुत्र से कुल आनंदित होता जग में।

शोक संताप को देने वाले, · पुत्र अनेक से क्या फल कुल को । एक ही पुत्र सुपुत्र बने गर, मिले सहारा शांति कुल को ।

पुत्र दुलारे 5 वर्ष तक, 15 वर्ष तक डांटें डप्टे । 16 वर्ष के होते ही, मित्र मानकर उससे निपटें ।

उपद्रव शत्रु आक्रमण, दुर्भिक्ष या शठ संगति से । अलग विलग हो दूर जो रहता, जीता युग २ वह नहीं मरता ।

धर्मकाम व मोक्ष अर्थ की, प्राप्ति हेतु कर्म न करता । जन्म लिया है मरण हेतु वह, जन्म मरण के मध्य है रहता

पति-पत्नी में कलह नहीं हो, ना पूजित हो मूर्ख जहां पर । कोष भरा हो अन्न धन से, बसती लक्ष्मी स्वयं वहां पर ।

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