Chanakya Niti kavya anuvad Chapter 10

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धनहीन नहीं कहाये निर्धन, विद्याहीन सदा ही निर्धन | धनहीन निर्धन नहीं गिनाए. विद्याहीन जनों में निर्जन ।

परख नैन से पांव बढ़ाना, छान वस्त्र से अंबु पीना । मन में सोच कर कार्य करना, शास्त्र वचन से जीवन जीना ।

जो सुख चाहे त्यागे विद्या, विद्या चाहे त्यागे सुख को । सुखार्थी नहीं पाता विद्या, विद्यार्थी नहीं पाए सुख को ।

क्या परोक्ष है कवि कोविद से, क्या नहीं कर सकती है नारी । क्या नहीं बकता मूढ, शराबी, कौवा क्या नहीं भक्षाहारी ।

निर्धन को धनी, दीन धनी को, राजा को रंक रंक को राजा, करे बिरंचि की माया यह यह बनता वह वह बनता यह ।

लालची के दुश्मन याचक है, उपदेशक शत्रु मूर्ख के । पति है शत्रु व्यभिचारिणी के चंद्र चोर और धूर्त के ।

न विद्या, तप, दान, नहीं शील, नहीं धर्म गुण पाया जाता । भार वह भू का पशु मृग सा अपने आप वह नष्ट हो जाता।

नहीं ज्ञान फलता उन जन में, सार हीन जिनका अंतर्मन । मलयागिरी के संग भी रह के, बांस नहीं बनता है चंदन ।

शास्त्र निरर्थक भी हो जाता, जिसकी अपनी है नहीं बुद्धि । दर्पण क्या तस्वीर दिखाए । जो जन दृष्टिहीन निर्बुद्धि ।

न कोई साधन इस धारा पर, जो दुर्जन को कर दे सज्जन । गुदा नहीं बन जाती उत्तम, जो शत बार अगर धोये जन ।

सिद्ध पुरुष से द्वेष है मृत्यु, शत्रु से द्वेष धन की हानि । सर्वनाश हो राजा द्वेष से, विप्र से द्वेष नाशे कुल प्राणी ।

कभी न रहना धनहीन होकर, हे! नर कभी तू बंधु के संग । वन में रहना, घास पर सोना, बसना भले ही बाघ गज संग ।

पत्ता खाना या फल खाना, जल पीकर के भले ही जीना । वृक्ष की छाल पहन कर के भी, भले ही रहना भले ही जीना ।

संध्या विप्र वृक्ष की जड़ है, धर्म-कर्म है पत्ती इसकी । साखा वेद, पर जड़ की रक्षा से रक्षा होगी इन सब की ।

कमला माता पिता जनार्दन, विष्णु भक्त भ्राता सा जिनको । देश विदेश का भेद न माने, तीनो लोक है अपना उनको ।

रात समय में एक वृक्ष पर, नाना वर्ण पखेरू आते । बैठ रात भर सुबह सवेरे, सभी दिशाओं में उड़ जाते । अतः सोच की ये नहीं बातें, मिलन वियोग में दिन और रातें ।

बुद्धि जिसे वही बलशाली, मूर्ख का बल बल न कहाये । चतुर खरहा की बुद्धि से, बली शेर मृत्यु को पाए ।

क्या चिंता है जीवन में जब हरि विश्वपालक कहलाएं । बच्चों के जीवन हेतु माता स्तन में दूध बनाएं। इसी बात को सोच सोचकर हरि सेवा में समय बिताएं । जिनका गुण सनातन गाये, उनमें अवगुण क्यों दिखलाएं ।

संस्कृत के में ज्ञान विशेष के होने पर भी, अन्य भाषा को सीखने हेतु उत्सुक वैसे । स्वर्ग लोक में अमृत रस के रहने पर भी, अधर पान परियों को देवता करते जैसे ।

आटे में दस गुणा अन्न से, य में 10 गुणा आटे से । से 8 गुणा मांस में घी में 10 गुणा मांस से । बल होता यह कहती नीति, बल वर्धन की यह है रीति ।

शाक आरोग्य में दूध से तन की, घी से वीर्य में होती वृद्धि । मांस बनाता मांस शरीर में, स्वास्थ्य ज्ञान की ये समृद्धि ।

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